कल परसों कोई तो भी एक नेता ने बयान दिया की “हम पंधराह करोड़ सौ करोड़ को भारी है” अबे तू तेरा देखना, तू अकेला भीड़ देखकर बयान करेगा और हम क्या तेरा समर्थन करेंगे ? आज के दौर में ऐसे लावारिस बयान कुछ मायने नहीं रखते|हम सब एक हैं, हम सब भारतीय हैं| वह तो जनगणना के समय किसकी कितनी तादाद है वह गिनते हैं इसका मतलब दंगे करने के लिए थोड़ी ही ना होता है|सच बताऊँ तो यह आंकड़े देश की तरक्की के लिए आजमाने चाहिए लेकिन कुछ सड़ेले दिमाग के नेता राजनीती के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं|

लेकिन अब जनता भी पहले जैसी नहीं रही वह सब जानती है| यह दंगे करते-करते बूढ़े हो गए लोग ये सब करके अब तक क्या हाथ में आया इसका परीक्षण भी किया है उन्होने| दंगे होंगे तो खून बहेगा लेकीन आप लोगोंने हमारा खून पेहलेसेही चुस लिया है| ये खून ऐसेही नही आता उसके लिये दो वक्त की रोटी भी पेट मे जानी चाहीए ना ? इसिलिए अब अगर कोई दंगल वाली बात करता है तो आप उस बयान को सिर्फ मनोरंजन की तौर से देखिए| टीवी चैनल पर कोई तो भी एक पिक्चर का डायलॉग हमने सुना था बस ऐसा याद करने का और छोड देनेका| ऐसी बातें दिल पर नहीं लेनी नुकसान हमारा ही होता है|

वह क्या है ना अब हमारे लड़के बच्चे स्कूल में पढ़ने लगे हैं |कायदे कानून की भी पढ़ाई कर रहे हैं|उनको पता है अगर हमारा नाम पुलिस स्टेशन में एक बार दर्ज हुआ तो सरकारी नौकरी मिलने में दिक्कत आती है|आजी तुम्हारे बच्चे तो परदेस में पढे होंगे, उनके नाम पर तुमने करोड़ों रुपयों की प्रॉपर्टी भी कर दी होगी|हम तो गरीब आदमी हैं बस दो वक्त की रोटी की तजवीज करने में पूरा दिन काम करते हैं|कोई गाडे पे केला बेच रहा है, तो कोई सफाईका काम कर रहा है| कोई कपडे सीला रहा है तो कोई गॅरेज मे काम कर रहा है|नेताजी आपको फुरसत मिले तो कभी ईनको भी हालचाल पुछो|

चेतावनी खोर बयान करने वालों पहले तुम हमारा और हमारे घर वालों के पेट भरने की योजना पर बात करो| मास्टर डिग्री लेकर घर बैठे हुए हमारे लड़का लड़कियों के रोजगार की बात करो|दिन-रात खेत में काम करके उपजाए हुए अनाज को बाजार में अच्छी किमत मिल नहीं रही उस पर बात करो|और यह सब होने के बाद हम जाती, धर्म,वर्ण की बात करेंगे|प्रिय नेताजी, इस दुनिया के सभी धर्म बहुत अच्छे हैं जी बस हम लोग ही गलत है जो इंसान को मारने की और मरने की बात करते हैं|लोग जिंदा रहे तो ही धर्म जिंदा रहता है|अगर बात करनी है तो जिंदगी की बात करो जिंदगीयाँ जलाने की नहीं|

वक्ता एवं लेखक : विशाल गरड
तारीख : बाईस फरवरी दो हजार बीस.